एक दिन चढा मै, तो रेल का सुनाऊ हाल ...
पास मेरे आके बैठा यूपी का भैय्या ...
बीच की निकाली मांग होठ सारे लाल लाल ,
खून सा पिए बैठा था पान का खबैय्या ...
मुझसे पूछे बार बार कहाँ को जाओगे जी साब,
तंग आया मैंने कहा तेरे घर जाऊंगा ,
बोला मेरा घर कहाँ , गाँव से मै आज आया ,
यारी मुझसे करो मै तुम्हारे घर आऊंगा .
चपर चपर करे मेरा चाटा था दिमाग ,
बात करे थूक मारे और मारे ठट्ठा ।
जाने क्या बिगाडा मैंने, पीछे मेरे पड़ गया ,
बड़ा था कमीना , साला- उल्लू का पट्ठा।
जैसे तैसे शांत किया तो भी हा -हा ही- ही करे ,
छोरी संग nayana
बड़ा समझाया पर अकड़ दिखाए लूलू ,
एक हाथ का नही था , दिखता पतंगा ।
ताक रहा बार बार एकटक सामने ही ,
क्योकि आगे वाला था जनानी वाला डिब्बा ।
छेड़ रहा छोरी को तो मारा उसने मुंह पे हाथ ,
मेरे कपडो पे आए पीक के से धब्बा ।
सवेरे सवेरे ठर्रा pe
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