ये सदी है नयी , ये दशक है नया
आज इंसान ने क्या से क्या कर दिया ।
ये चला दौर ऐसा है विज्ञान का ,
सैटेलाईट खड़ा चाँद पर कर दिया ।
तार पाते थे , और चिट्ठी लिखते सभी ,
आज ईमेल चैटिंग का युग आ गया ।
तार वाले थे फ़ोन कार्ड लेस बन गए ,
और मोबाइल जनता के मन भा गया ।
कंप्यूटर आ गया हर जगह छा गया ,
हस्तलेखन की आदत छुड़ा कर गया ।
छोटे धंदे चलाते मुनीमों के घर ,
आज खातों को Tally चुरा ले गया ।
पहले मिलते गले होली दीवाली पर ,
आज ग्रीटिंग भी ईमेल से आती है ।
व्यस्तता खा गयी ज़िन्दगी के मज़े ,
फीके त्यौहार फीकी हंसी आती है ।
पहले पैसा ना था , घर में खुशियाँ भरी ,
आज पैसा भरा घर में खुशियाँ नहीं ।
आज के नौजवान जैसे बीमार से ,
आज के नौजवान जैसे बीमार से ,
हर नए रोग से आज दुनिया भरी ।
है समय सुधरो इंसान , प्रकृति बोलती ,
मै जो रूठी तो ऐसा प्रलय लाऊँगी ।
बदला लेने चली तेरी मनमानी के ,
अब सुनामी के जैसे कहर लाऊँगी ।
मेरा तन आज सब घाव से भर दिया ,
आज इंसान ने क्या से क्या कर दिया ।
---श्रेया तिवारी , मुंबई
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