प्यारे दोस्तों ,
आज मै आपके सामने अपना लिखा हुआ एक गाना प्रस्तुत कर रहा हूँ । जिसे मैंने एक फिल्म के लिए लिखा था , दुर्भाग्यवश वो फ़िल्म रिलीज़ ही नही हो पायी । मुंबई में अभी बारिश शुरू हुई है, ये गीत इस मौसम के लिए उपयुक्त और सटीक रहेगा ।
आई ऋतु मस्तानी रे , काली घटा छाई रे ,
रिमझिम बूंदों में भीगे तन मस्ती सी आई रे ....... कि काली घटा छाई रे ।
१- पीहू पीहू पपीहा चिल्लाये प्यास बुझी है उनकी ,
कीट पतंगे नाच उठे , मेंढक टर्राये सनकी ।
पूरी हो गयी आशाएं जैसे इन सबके मन की ,
इस मौसम में याद सताई हमको भी बस उनकी ।
गोरे गोरे गाल पे जिनके जुल्फें लहरायीं रे ....... कि काली घटा छाई रे ।
२- छतरी लेकर निकल पड़े सब बाजारों की ओर,
इधर भी पानी , उधर भी पानी यही मचा है शोर ।
वो आई बिन छतरी के तो नाचा मन में मोर ,
बोला आजा छतरी में , बारिश पकडेगी ज़ोर ।
यारो बारिश हुई तेज़ पर वो नहीं आई रे ....... कि काली घटा छाई रे ।
३- भीग गए कपड़े उसके और चिपक गए थे तन से,
उनको ढीला करती थी वो कुछ शर्माते मन से ।
फिर भी अपना काम किए जाती थी बड़ी लगन से ,
मुझको कर गयी दीवाना वो पूरे तन -मन- धन से ।
भीगी जुल्फों को संवारती लगती थी प्यारी रे ....... कि काली घटा छाई रे ।
आई ऋतु मस्तानी रे , काली घटा छाई रे ,रिमझिम बूंदों में भीगे तन मस्ती सी आई रे ....... कि काली घटा छाई रे ।
----श्रेय तिवारी , मुंबई
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