भोर हुआ सूरज भी सर पर चढ़ आया
चैत्र महीने की तपती गरमी लाया ।
गिरती थी माथे से बूंद पसीने की ,
पर उसको ज्यादा थी परवाह जीने की ।
गर्म हवाएं चलती तन ना थकता हो ,
पीकर पानी चेहरा जहाँ चमकता हो ।
सौ में से पचपन (५५%) में ऐसा होता है ,
जिनके घर में नन्हा बचपन रोता है ।
भूख बुझी हो जिनकी केवल पानी से ,
रात कटी हो सुनते एक कहानी से ।
रात का सपना सुबह की रोटी जिसका हो ,
बिन बोले आंखों से दर्द टपकता हो ।
ज़िम्मेदारी से झुकते जिनके कंधे ,
मेहनत करते, करते नही ग़लत धंधे ।
रोटी एक मिली तो आधी वो खाए ,
गमझे में बांधे आधी वो घर लाये ।
रोटी ही जिनके भविष्य की पूंजी हो ,
सुबह शाम बस रोटी की ही सूझी हो ।
आधा पेट भरा सोये खर्राटों में ,
संतुष्टि दिखती हो उनकी बातों में ।
बाप बेचारा लगता हो असहाय दुखी ,
माँ जिसकी बीमारी से हो बुझी - बुझी ।
स्तन से जिसके न दुग्ध निकलता हो ,
गोद में लेटा बच्चा पड़ा बिलखता हो ।
क्या ये ही भारत के उज्जवल सपने हैं ,
मुंह मत फेरो इनसे ये सब अपने हैं ।
कैसी है मायूसी चेहरों पे देखो ,
अपने बच्चों की सूरत इनमें देखो ।
आओ हम सब मिलकर एक कसम खाएं ,
इन नन्हों को मुफ्त में शिक्षा दे पायें ।
शिक्षा से ही इनका जीवन सुधरेगा ,
और इनसे भारत का चेहरा बदलेगा ।
---श्रेय तिवारी , मुंबई
Mobile: +919867590757
No comments:
Post a Comment