प्यारे दोस्तों ,
बहुत दिनों बाद, मेरे कुछ मित्रों के आग्रह पर मै आज मेरी एक नई रचना (गीत) प्रस्तुत कर रहा हूँ । आशा करता हूँ कि आप इस रचना को पढ़कर मुझे अपनी टिप्पणिया ज़रूर भेजेंगे । वैसे गीत को पढने के बजाय सुनने में आनंद आता है ।
मैंने पत्थर को पूजा कि "पूजा " मिले ,
हसरतें मर गयीं पर न पूजा मिली ।
एक नफस कि तरह क्यों था देखा मुझे,
मेरा सेहरा सा जीवन था खिल सा गया ।
मै तो अपने कफस से क्यों बहार हुआ ,
दिल ज़खीरा - ऐ - ग़म हो गया दिलनशीं ।
मैंने पत्थर को पूजा कि "पूजा " मिले ,
हसरतें मर गयीं पर न पूजा मिली ।
मै वो परवाज़ था जो सदा कर रहा ,
ऐ खुदा वक्ते - रुखसत मिले न कभी ।
देख तुझको करूँगा मै दीदा -ऐ - तर ,
अपनी देहलीज़ से तू लगे महज़बीं ।
मैंने पत्थर को पूजा कि "पूजा " मिले ,
हसरतें मर गयीं पर न पूजा मिली ।
दरे- आमद पे तेरी यूँ राहें तकीं ,
जब सनमखाने से नज़रें मुझपे पड़ीं ।
क्या अदावत थी मुझसे बता दो तुम्हीं ,
वो निगाहें करम भी न मुझको मिलीं ।
मैंने पत्थर को पूजा कि "पूजा " मिले ,
हसरतें मर गयीं पर न पूजा मिली ।
क्यों खुदा मुझसे रूठा है मेरा हबीब ,
मातमे - ज़िन्दगी है मेरी जिंदगी ।
दर्द - ऐ - दिल क्यों बता तूने इतने दिए ,
इन ग़मों को छिपाकर बना मै कवि ।
मैंने पत्थर को पूजा कि "पूजा " मिले ,
हसरतें मर गयीं पर न पूजा मिली ।
---श्रेय तिवारी , मुंबई
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