करीब दस साल पहले मैंने ये गाना लिखा था , जब मै कॉलेज में पढ़ा करता था । तब मैंने किसी और गीत से प्रेरित होकर ये गीत नही लिखा था । हालांकि फ़िल्म थानेदार में कुछ ऐसा ही मिलता जुलता गाना आ चुका है , पर मेरे गाने का लय - ताल उस गाने से बिल्कुल अलग है । आज वो गाना मै आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ ।
कमबख्त ये घरवाली , मुझको देती गाली ,
कोई मदद करो मेरी , ग्रह मुझपर ये भारी ।
ख़ुद पड़ी बेड पर मुझसे झाडू लगवाती है ,
डंडा ले पीछे बैठी , बर्तन मंज्वाती है ।
किससे दुःख बांटू अपना आँखों में आंसू हैं,
मेरा दुःख मेरी बीबी और मेरी सासू है ।
जिसको मुझसे हमदर्दी है , वो मेरी है साली ,
कमबख्त ये घरवाली , मुझको देती गाली ,
कोई मदद करो मेरी , ग्रह मुझपर ये भारी ।
किस चक्की का खाती है , कुछ काम करे ना काज ,
मेरे राम समझ नहीं पाया उसकी सेहत का राज ।
सब खून पी गई मेरा , मै कीकड़ सा दीखता हूँ ,
वो हाथ प्यार से फेरे मै चक्कर खा गिरता हूँ ।
जब गुस्से में वो आए , दिखती है माँ काली ,
कमबख्त ये घरवाली , मुझको देती गाली ,
कोई मदद करो मेरी , ग्रह मुझपर ये भारी ।
किस जेल में आ बैठा हूँ , बाहर हरियाली है ,
एक दाल खा बोर हुआ हूँ , मन में बिरयानी है ।
हर रोज जायका मेरा फीका सा होता है ,
नमकीन रोज़ चखने को मन मेरा रोता है ।
वो फूल बंद गोभी सा मै हूँ उसका माली ,
कमबख्त ये घरवाली , मुझको देती गाली ,
कोई मदद करो मेरी , ग्रह मुझपर ये भारी ।
---श्रेय तिवारी , मुंबई