Saturday, December 20, 2008

इंडिया आगे बढो ..

बिगुल बजाओ ललकारो चढ़ जाओ अपने हाथी पर ,
क्यो सोते हो मार गिराओ चढ़ दुश्मन की छाती पर ।


१- मेरा भारत किसी समय शेरों में जाना जाता था ,
गुर्राता था तब दुश्मन झट से पीछे हट जाता था ।
आज बेचारा धमकी देकर ख़ुद रातों को जाग रहा ,
एक पड़ोसी गीदड़ इसको छका -छका कर भाग रहा ।
कुछ खूनी वहशी आकर धरती की इज्जत लूट गए ,
मुट्ठी भर जुगनूँ घुसकर सूरज के मुंह पर थूक गए ।
क्रिया पर प्रतिक्रिया ना करना हमको तो खेल हुआ ,
न्यूटन का तृतीय नियम भी इसके आगे फेल हुआ ।
आज अहिंसावादी गाँधी रोता पड़ा समाधी पर ,
क्यो सोते हो मार गिराओ चढ़ दुश्मन की छाती पर ।


२- काले दिलवाले हमसे तो प्यार की बातें करते हैं ,
पाकिस्तानी भारत में आ उल्लू सीधा करते हैं ।
प्यार हमारा ही पाकर वो भेद हमारे जान गए ,
खून बहाने वालों को हम शान्ति दूत क्यो मान रहे ।
क्यों इनको आमंत्रित करते मेरे देश की धरती पर ,
बॉलीवुड क्यों नही सोचता इन सब की पाबंदी पर ।

हक खाकर भारतवासी का शोहरत नाम कमाते है ,
मेरी थाली में खाकर भी गीत पाक के गाते है ।

मै खुश होऊंगा अब इन कठमुल्लों की बर्बादी पर ,

क्यो सोते हो मार गिराओ चढ़ दुश्मन की छाती पर ।


३- सारे आतंकी बैठे है जिसके मैले दामन में ,
ज़हर उगलने वाले बैठे हर गलियारे आँगन में ।
आज विश्व में हर कोई इस सच्चाई को जान गया ,
मानवाधिकार आयोग भी आख़िर इन बातों को मान गया ।
फिर क्यो चुप बैठे है हम क्यों नही चढाई करते है ,
खून का बदला खून से लेने में आख़िर क्यों डरते है ।
नौ - ग्यारह हमले का बदला यूएस ने ले डाला था ,
अफगानी धरती पर घुसकर तालिबान को मारा था ।
शर्म क्यों नही करते है हम ऐसी इस आज़ादी पर ,
क्यो सोते हो मार गिराओ चढ़ दुश्मन की छाती पर ।


४- मै स्वागत करता हूँ होटल ओबेरॉय के कहने का ,
नही मिलेगा मौका अब पाकिस्तानी को रहने का ।
ये सीधी सी बात हमारी दिल्ली नही समझती है ,
कर्जा लेने की खातिर इन सबकी लार टपकती है ।
इस कारण अपने आका को नाखुश देख नही सकते ,
देश की किसको फिक्र यहाँ , ये कोई फ़र्ज़ नही रखते ।
मरते है हम और शिकायत आकाओं से करते है ,
क्या मजबूरी है जो हम हमला करने से डरते हैं ।
हिरदय डोल रहा ऐसी कायरता और लाचारी पर ,
क्यो सोते हो मार गिराओ चढ़ दुश्मन की छाती पर ।

----श्रेय तिवारी , मुंबई