Thursday, January 14, 2010

मेरी माँ ...!!

दोस्तो, ये एक छंद है, जो कि मैंने ‘माँ’ को समर्पित किया है , छंद को पढने का तरीका आम कविताओं से थोड़ा अलग होता है छंद रा , ज , भा , ग …। रा , ज , भा , ग के तरीके से पढ़ा जाता है , सच तो ये है कि छंद कवि के मुख से सुनने मे ही सुंदर लगता है । पर मुझे ये पता है कि आप लोग विद्वान और हिन्दी साहित्य के जानकार है ,और आप अवश्य ही मेरी रचना पर टिपण्णी देंगे ।

माँ मेरी तू है महान देवी देवता समान ,

तेरे पग की धूल मैं ललाट से लगाऊंगा ।

तेरे प्यार की पवित्रता है गंगा के समान ,

जिंदगी भी कम रहेगी मोल जो चुकाऊंगा !

1- जन्म देती हँसके सारी पीड़ाये सहन करे ,

है ख़ाक मेरी ज़िंदगी जो उसको मैं दुखाऊंगा ।

ठंड बाँट ली थी मेरी , छाती से लगा बदन ,

मैं आज तेरी आरजू को पूरा कर दिखाऊंगा ।

तेरे प्यार की पवित्रता है गंगा के समान ,

जिंदगी भी कम रहेगी मोल जो चुकाऊंगा !

2- तू न सोई रातभर सुलाया मुझको थपकी मार ,

तेरी लोरी और कहानी भूल मैं न पाउँगा ।

मुझको जब भी कष्ट हुआ तू भी रोई बार बार ,

आज तेरे सारे दुःख मैं हस के झेल जाऊंगा ।

तेरे प्यार की पवित्रता है गंगा के समान ,

जिंदगी भी कम रहेगी मोल जो चुकाऊंगा !

(इन चार पंक्तियों को ध्यान से पढिये, मैंने यहाँ “उपमा” शब्द को दो बार किस तरह प्रयुक्त किया है )

3- माँ तेरी विशेषताएं गिन न पाऊं मैं कभी ,

और उपमा(compare) मैं तेरी किसी से आज कर न पाऊंगा,

माँ तो माँ है सर्वदा , उप -माँ न होती है कभी ,

उप -माँ हुई तो कैसे तेरा लाल मैं कहाऊंगा ।

तेरे प्यार की पवित्रता है गंगा के समान ,

जिंदगी भी कम रहेगी मोल जो चुकाऊंगा !

4- ऐ मेरे प्रभु तू देना माँ के गम सभी मुझे ,

मैं अपने सुख से माँ की झोलियों को भरता जाऊंगा ।

और थक जो जाऊँ मैं कभी माँ अंक (गोदी) मे लेना मुझे ,

हर जन्म - जन्म माँ तेरी ही कोख मे समाऊंगा ।

माँ मेरी तू है महान देवी देवता समान ,

तेरे पग की धूल मैं ललाट से लगाऊंगा ।

तेरे प्यार की पवित्रता है गंगा के समान ,

जिंदगी भी कम रहेगी मोल जो चुकाऊंगा !

श्रेय तिवारी , मुंबई

+91 9867590757

Friday, January 8, 2010

जागो मेरे देशवासियों जागो ...!!

मै सबको खुश करने यहाँ नही आया ,
ना रामायण वेद सुनाने को आया ।
कैसे चोट दिखा दूँ मै अपने तन की ,
किससे बांटू मै पीड़ा अंतर्मन की ।


१- खून बह रहा भारत माँ के बेटों का ,
मरहम नहीं है दिल्ली की उन चोटों का ।
कौन हैं वो ? जो देश का रक्त बहाते हैं ,
कौन हैं ? जो बालक अनाथ कर जाते हैं ।
कौन हैं वो ? माँ की गोदें सूनी करते ,
कौन हैं वो ? जो कोई दया नहीं रखते ।
इंसानो का खून बहाते जेहादी ,
कौन सा मज़हब देता है ये आज़ादी ।
सहमी आँखें रोती हैं पीड़ित - जन की ,
किससे बांटू मै पीड़ा अंतर्मन की ।


२- क्यों सब ऐसे हाथ पे हाथ धरे बैठे ,
क्यो सब ऐसे वार्ताओं में हैं बैठे ।
देश के नेता भाषण के खाते गोते ,
काश के मरने वालों में वो ख़ुद होते ।
तब उनको वो दर्द समझ में आ जाता ,
फिर कोई कानून बनाया ही जाता ।
ये हैं जिम्मेदार खून की होली के,
यही लुटेरे हर दुल्हन की डोली के ।
भीख मांगती धरती आज समर्पण की ,
किससे बांटू मै पीड़ा अंतर्मन की ।


३- ऐसे जीने से मै मौत सराहूँगा ,
अपने जैसे ही दस-बीस बनाऊंगा ।
वतन की खातिर जो मिटटी में मिल जाएँ ,
मानव- बम बनकर संसद में फट जाएँ ।
जब दिल्ली के नेता सब मर जायेंगे ,
सच मानो हम तब ही खुश रह पायेंगे ।
और इस खातिर देनी होगी कुर्बानी ,
“मै भी हूँ तैयार” आवाजें है आनी ।
सिखलानी परिभाषा दीवानेपन की ,
किससे बांटू मै पीड़ा अंतर्मन की ।


——श्रेय तिवारी , मुंबई