Thursday, November 27, 2008

बॉम्बे ब्लास्ट ..!!

1- और नवम्बर सत्ताईस की सुबह नई ,
मुंबई पर था हमला जब ये ख़बर सुनी ।
जैसे ही मैंने टेलीवीजन खोला ,
दर्द विदारक चीखों से था मन डोला ।
मचा हुआ था चारों ओर महाक्रंदन ,
प्रभु मेरे विकलांग बने है रघुनन्दन ।
ले लो अब अवतार देश की धरती पे ,
दे दो छुटकारा आतंकी बस्ती से ।
पर प्रभु मेरी बात क्यो नही है सुनते ,
सपने में आकर वो मुझसे है कहते ।
"श्रेय" यहाँ जो अपनी मदद नही करते ,
सच हम भी तो उनकी मदद नही करते ।


२- और तभी मै चिंगारी देने आया ,
जुड़ जाओ सब साथ मेरे कहने आया ।
जान हाथ पर ले आगे बढ़ना होगा ,
दिल्ली से अनुरोध नही करना होगा ।
आँखें मूंदे बैठे है दिल के काले ,
है लाचार बने बैठे सत्ता वाले ।
नही ज़रूरत ऐसे किसी सरफरे की ,
हमें ज़रूरत है "हेमंत करकरे" की ।
बटला में मरने वाले उस "मोहन" की ,
आज ज़रूरत है ऐसे सनकीपन की ।
देश की खातिर कंधे जहाँ फड़कते हों ,
खून देश का अपना समझ भड़कते हों ।


३- जब छब्बीस मिल कर सौ -सौ को मार सकें ,
घायल कर दें सबको ख़ुद ना हार सकें ।
क्या हम उनसे ये भी सीख नही सकते ,
शर्म करो हम इतना जिगर नहीं रखते ।
राजनीति के दल ये दल - दल में अटके ,
आरोपों और प्रत्यारोपण में भटके ।
आतंकी दरिया में हम खाते गोते ,
फिर भी सारे मिलकर एक नहीं होते ।
आज मरे उनमें विदेश के सैलानी ,
भारत संस्कृति क्या है सबने पहचानी ।
अतिथि जहाँ देवों समान रखा जाता ,
आज उन्हें आतंक दैत्य ही खा जाता ।


४- आगे आओ मिलकर हाथ मिलायेंगे ,
भारत को फिर से आजाद कराएँगे ।
समझो बस इस धरती को अपनी माता ,
समझो सबको अपना ही भाई - भ्राता ।
नही ज़रूरत मुझको तख्तो ताजों की ,
नही ज़रूरत स्वागत की और बाजों की ।
मुझे ज़रूरत सबकी देश सुरक्षा में ,
मै मांगू बलिदान देश की रक्षा में ।
बोलो क्या मै ऐसे ही चिल्लाऊंगा ,
दो ज़बाब क्या ऐसे ही मै गाऊंगा ।
इंतज़ार है मुझको देश के पुत्तर का ,
इंतज़ार है मुझको सबके उत्तर का ।

----श्रेय तिवारी , मुंबई

Monday, November 24, 2008

मेरी अंग्रेजी समस्या ...!!

मै अंग्रेजी में थोड़ा कमज़ोर रहा हूँ ,
इसलिए शायद बड़े कष्ट झेल चुका हूँ ।

एक दिन हमारे फ्लैट पर एक जापानी आया,
हमने उसे डिनर में दही खिलवाया ।
वो बोला "what is it?" मैंने कहा दही ,
नही समझा , बोला "What do you mean by DAHI "
अब मै उसे कैसे समझाता ....
दही की अंग्रेजी जानता तो बताता ।
मैंने सोचा बेटा तिवारी , दिमाग लगाओ ,
और होने वाली बेइज्जती को बचाओ ।
और एक मिनट बाद ही मै बोला .....
"The milk sleep at night.....in the morning tight"
"You also can take a bite..... Is called DAHI "
मेरे साथ मेरा दोस्त था , बोला बहुत सही,
क्या परिभाषा कही , अब इसका बाप भी नही भूलेगा दही ।

ऐसे ही एक बार हमने दस मैलोडी (choklate) खा ली ,
जिससे दस्त और मरोड़ ने आफत कर डाली .....
टीवी पर प्रचार आता था कि "मैलोडी खाओ , ख़ुद जान जाओ"
पर मेरे साथ कुछ ऐसा था कि मैलोडी खाओ और अस्पताल जाओ ।
अब मै अस्पताल में डॉक्टर के पास गया ,
सामने पड़े स्ट्रेचर पर लंबा लंबा हो गया ।
और पूछा कि हे डॉक्टर मुझे क्या हुआ ,
मैलोडी खाई और पेट दर्द क्यों हुआ ।
डॉक्टर बोला श्रेय जी आप इंग्लिश नही पढ़ पाते है ,
हमने कहा क्यों ? बोला इसलिए तो मैलोडी कि जगह माला - डी खाते है ।

-----Shreya Tiwari, Mumbai

Tuesday, November 4, 2008

मेरा दुःख !!

मेरे प्यारे दोस्तों ,

ये कविता मैंने बड़े दुखी मन से लिखी है , इसे लिखने में काफी समय लगा । आप लोग इसको बहुत ध्यान से पढिये , और अपने सुझाव दीजिये । क्या मेरा देश ऐसा ही रहेगा ? आखिर कब तक ये सब चलता रहेगा ?

आजाद धरती की कहानी कवि तिवारी गा रहा है
भाव क्या उसके ह्रदय में आपको दिखला रहा है ।

१- काश्मीर आज मुद्दा गांधी की है देन सारी ,
हरिजनों के सारे हक , वो खा गया गंजा पुजारी ।
जब सुनू मै शब्द ऐसे आँख भर आती हमारी ,
थरथरा उठती शिराएँ क्रोध से सारी हमारी ।

२-क्रांतिकारी कष्ट सहते वतन पर ही मर मिटे ,
आज हम अहसान भूले , क्या से क्या बकने लगे ।
चाहे जब आजाद धरती को ही छल से बेचते ,
खून से सींचा जिन्होंने , वो बागीचा नोंचते ।

३- दो पलों में कह दिया, जीवन गुलामी का सही था ,
अरे तूने कह दिया , आजाद है बंदी (गुलाम) नहीं था ।
भूल डाले क्रांतिकारी जो वतन पर मर मिटे है ,
अमिताभ और सलमान ही तेरी जुबान पर बस चले है ।

४-धन्य है धरती जहाँ वो भगतसिंह को जन्म देती ,
चंद्रशेखर की कहानी सागरों की लहर कहती ।
वायु भी कहती मुझे तुम खून दो आजाद कर दूँ ,
और लहराता तिरंगा ये कहे मै जोश भर दूँ ।

५- दुश्मनों की चाल पर भी अंग ना जिनके फड़कते,
लाज लुटती हो धरा की और ना शोले भड़कते ।
है बड़ी लानत तुम्हारी ज़िंदगी हे कायरो ,
मौत तो आनी ही है , तुम अब मरो या जब मरो ।

६- मानता हूँ रिश्ते - नातों से सभी को प्यार होता ,
पर वतन की आन की खातिर सभी बेकार होता ।
भूख ही जिसको नही वो क्या बताये भोज्य स्वाद ,
और रंग लाती है हिना आख़िर कुचल जाने के बाद ।

७- वीर सीमा पर डटे जो लड़ रहे कठिनाइयों में ,
कडकडाती ठण्ड में भी वो डटे है खाइयों में ।
अरे है माँ -बाप उनके और भइया बहिन भी है ,
दुश्मनों को भून डालें मगर ख़ुद वो अजनबी है ।

८- चार दिन शादी हुए, पर याद ना आए सनम की ,
जीत के ही लौटना , माँ -बाप ने ऐसी कसम दी ।
पर्वत राज हिमालय भी तो झुक उठे इनके नमन को ,
मौत ऐसे प्राण लेकर धन्य समझेगी स्वयं को ।

९- क्या मिलेगा उन सिपाही को जो मर कर भी अमर है ,
श्रेय ले जाते है ' मेजर ' और जो ' ब्रिग्रेडियर ' है ।
सारे मैडल और तमगे सब उन्ही के नाम रहते ,
और सिपाही तो सदा गुमनाम के गुमनाम रहते ।

कारगिल युद्ध में एक नवविवाहित सिपाही की लाश जब उसके गाँव आई , तो उसकी नवविवाहिता पत्नी ने अपने पति की लाश को कन्धा दिया , ये घटना राजस्थान के एक गाँव की है । शायद मेरे देश में ऐसा कम ही सुनने में आता है । मै ऐसी देवी को शत शत प्रणाम करता हूँ । और उसके सम्मान में कुछ पंक्तिया लिख रहा हूँ ।

१०- आज इक्कीसवीं सदी में रूढिवादी जी रहे है ,
छींक लगने पर वो लौटे , पुनः पानी पी रहे है ।
ख़त्म कर दो वो प्रथाएं जो सदा से ही रही है ,
है वो देवी पति की अर्थी को जो कन्धा दे रही है ।

११- वो है गौरव देश की जो भ्रांतियों को तोड़ दे ,
चल रही हों आंधियां वो रूख हवा का मोड़ दे ।
मै नही कहता कि उसको खा सकेगा काल ,
वो है देवी चंडिका का रूप अति विकराल ।

१२- नारियों का देश भारत , नारी मेरी सभ्यता ,
नारियों के चक्षु से बहती है पीड़ा और व्यथा ।
त्याग और बलिदान की मूरत यहाँ की नारिया ,
लक्ष्मीबाई , जिजाबाई थीं यहाँ चिंगारियां ।

१३- अरे है उन्ही के लाल फिर क्यों खून ठंडा हो गया ,
चाँद लालों की वज़ह से देश गन्दा हो गया ।
एक रहता है खड़ा एक नींद में ही सो रहा ,
बेच के इज्जत धरा की ख्वाब में है खो रहा ।

१४-अरे क्यों " तिवारी " दे रहा उपदेश कायर है यहाँ ,
सैकड़ों गद्दार है और सैकड़ों डायर यहाँ ।
सच तो ये है , आज भी हम फिर गुलामी कर रहे है ,
छीनता हमसे जो रोटी हम उसी को चुन रहे है ।

मै हूँ मुश्किल में न जाने , युग कहाँ को जा रहा है ,
"श्रेय तिवारी" पी के आंसू गा रहा है , गा रहा है ... !

-----श्रेय तिवारी , मुंबई