Tuesday, November 4, 2008

मेरा दुःख !!

मेरे प्यारे दोस्तों ,

ये कविता मैंने बड़े दुखी मन से लिखी है , इसे लिखने में काफी समय लगा । आप लोग इसको बहुत ध्यान से पढिये , और अपने सुझाव दीजिये । क्या मेरा देश ऐसा ही रहेगा ? आखिर कब तक ये सब चलता रहेगा ?

आजाद धरती की कहानी कवि तिवारी गा रहा है
भाव क्या उसके ह्रदय में आपको दिखला रहा है ।

१- काश्मीर आज मुद्दा गांधी की है देन सारी ,
हरिजनों के सारे हक , वो खा गया गंजा पुजारी ।
जब सुनू मै शब्द ऐसे आँख भर आती हमारी ,
थरथरा उठती शिराएँ क्रोध से सारी हमारी ।

२-क्रांतिकारी कष्ट सहते वतन पर ही मर मिटे ,
आज हम अहसान भूले , क्या से क्या बकने लगे ।
चाहे जब आजाद धरती को ही छल से बेचते ,
खून से सींचा जिन्होंने , वो बागीचा नोंचते ।

३- दो पलों में कह दिया, जीवन गुलामी का सही था ,
अरे तूने कह दिया , आजाद है बंदी (गुलाम) नहीं था ।
भूल डाले क्रांतिकारी जो वतन पर मर मिटे है ,
अमिताभ और सलमान ही तेरी जुबान पर बस चले है ।

४-धन्य है धरती जहाँ वो भगतसिंह को जन्म देती ,
चंद्रशेखर की कहानी सागरों की लहर कहती ।
वायु भी कहती मुझे तुम खून दो आजाद कर दूँ ,
और लहराता तिरंगा ये कहे मै जोश भर दूँ ।

५- दुश्मनों की चाल पर भी अंग ना जिनके फड़कते,
लाज लुटती हो धरा की और ना शोले भड़कते ।
है बड़ी लानत तुम्हारी ज़िंदगी हे कायरो ,
मौत तो आनी ही है , तुम अब मरो या जब मरो ।

६- मानता हूँ रिश्ते - नातों से सभी को प्यार होता ,
पर वतन की आन की खातिर सभी बेकार होता ।
भूख ही जिसको नही वो क्या बताये भोज्य स्वाद ,
और रंग लाती है हिना आख़िर कुचल जाने के बाद ।

७- वीर सीमा पर डटे जो लड़ रहे कठिनाइयों में ,
कडकडाती ठण्ड में भी वो डटे है खाइयों में ।
अरे है माँ -बाप उनके और भइया बहिन भी है ,
दुश्मनों को भून डालें मगर ख़ुद वो अजनबी है ।

८- चार दिन शादी हुए, पर याद ना आए सनम की ,
जीत के ही लौटना , माँ -बाप ने ऐसी कसम दी ।
पर्वत राज हिमालय भी तो झुक उठे इनके नमन को ,
मौत ऐसे प्राण लेकर धन्य समझेगी स्वयं को ।

९- क्या मिलेगा उन सिपाही को जो मर कर भी अमर है ,
श्रेय ले जाते है ' मेजर ' और जो ' ब्रिग्रेडियर ' है ।
सारे मैडल और तमगे सब उन्ही के नाम रहते ,
और सिपाही तो सदा गुमनाम के गुमनाम रहते ।

कारगिल युद्ध में एक नवविवाहित सिपाही की लाश जब उसके गाँव आई , तो उसकी नवविवाहिता पत्नी ने अपने पति की लाश को कन्धा दिया , ये घटना राजस्थान के एक गाँव की है । शायद मेरे देश में ऐसा कम ही सुनने में आता है । मै ऐसी देवी को शत शत प्रणाम करता हूँ । और उसके सम्मान में कुछ पंक्तिया लिख रहा हूँ ।

१०- आज इक्कीसवीं सदी में रूढिवादी जी रहे है ,
छींक लगने पर वो लौटे , पुनः पानी पी रहे है ।
ख़त्म कर दो वो प्रथाएं जो सदा से ही रही है ,
है वो देवी पति की अर्थी को जो कन्धा दे रही है ।

११- वो है गौरव देश की जो भ्रांतियों को तोड़ दे ,
चल रही हों आंधियां वो रूख हवा का मोड़ दे ।
मै नही कहता कि उसको खा सकेगा काल ,
वो है देवी चंडिका का रूप अति विकराल ।

१२- नारियों का देश भारत , नारी मेरी सभ्यता ,
नारियों के चक्षु से बहती है पीड़ा और व्यथा ।
त्याग और बलिदान की मूरत यहाँ की नारिया ,
लक्ष्मीबाई , जिजाबाई थीं यहाँ चिंगारियां ।

१३- अरे है उन्ही के लाल फिर क्यों खून ठंडा हो गया ,
चाँद लालों की वज़ह से देश गन्दा हो गया ।
एक रहता है खड़ा एक नींद में ही सो रहा ,
बेच के इज्जत धरा की ख्वाब में है खो रहा ।

१४-अरे क्यों " तिवारी " दे रहा उपदेश कायर है यहाँ ,
सैकड़ों गद्दार है और सैकड़ों डायर यहाँ ।
सच तो ये है , आज भी हम फिर गुलामी कर रहे है ,
छीनता हमसे जो रोटी हम उसी को चुन रहे है ।

मै हूँ मुश्किल में न जाने , युग कहाँ को जा रहा है ,
"श्रेय तिवारी" पी के आंसू गा रहा है , गा रहा है ... !

-----श्रेय तिवारी , मुंबई

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