आज के नौजवान जैसे बीमार से ,
Saturday, July 17, 2010
नयी सदी और नया दशक....!!
आज के नौजवान जैसे बीमार से ,
Thursday, January 14, 2010
मेरी माँ ...!!
दोस्तो, ये एक छंद है, जो कि मैंने ‘माँ’ को समर्पित किया है , छंद को पढने का तरीका आम कविताओं से थोड़ा अलग होता है छंद रा , ज , भा , ग …। रा , ज , भा , ग के तरीके से पढ़ा जाता है , सच तो ये है कि छंद कवि के मुख से सुनने मे ही सुंदर लगता है । पर मुझे ये पता है कि आप लोग विद्वान और हिन्दी साहित्य के जानकार है ,और आप अवश्य ही मेरी रचना पर टिपण्णी देंगे ।
माँ मेरी तू है महान देवी देवता समान ,
तेरे पग की धूल मैं ललाट से लगाऊंगा ।
तेरे प्यार की पवित्रता है गंगा के समान ,
जिंदगी भी कम रहेगी मोल जो चुकाऊंगा !
1- जन्म देती हँसके सारी पीड़ाये सहन करे ,
है ख़ाक मेरी ज़िंदगी जो उसको मैं दुखाऊंगा ।
ठंड बाँट ली थी मेरी , छाती से लगा बदन ,
मैं आज तेरी आरजू को पूरा कर दिखाऊंगा ।
तेरे प्यार की पवित्रता है गंगा के समान ,
जिंदगी भी कम रहेगी मोल जो चुकाऊंगा !
2- तू न सोई रातभर सुलाया मुझको थपकी मार ,
तेरी लोरी और कहानी भूल मैं न पाउँगा ।
मुझको जब भी कष्ट हुआ तू भी रोई बार बार ,
आज तेरे सारे दुःख मैं हस के झेल जाऊंगा ।
तेरे प्यार की पवित्रता है गंगा के समान ,
जिंदगी भी कम रहेगी मोल जो चुकाऊंगा !
(इन चार पंक्तियों को ध्यान से पढिये, मैंने यहाँ “उपमा” शब्द को दो बार किस तरह प्रयुक्त किया है )
3- माँ तेरी विशेषताएं गिन न पाऊं मैं कभी ,
और उपमा(compare) मैं तेरी किसी से आज कर न पाऊंगा,
माँ तो माँ है सर्वदा , उप -माँ न होती है कभी ,
उप -माँ हुई तो कैसे तेरा लाल मैं कहाऊंगा ।
तेरे प्यार की पवित्रता है गंगा के समान ,
जिंदगी भी कम रहेगी मोल जो चुकाऊंगा !
4- ऐ मेरे प्रभु तू देना माँ के गम सभी मुझे ,
मैं अपने सुख से माँ की झोलियों को भरता जाऊंगा ।
और थक जो जाऊँ मैं कभी माँ अंक (गोदी) मे लेना मुझे ,
हर जन्म - जन्म माँ तेरी ही कोख मे समाऊंगा ।
माँ मेरी तू है महान देवी देवता समान ,
तेरे पग की धूल मैं ललाट से लगाऊंगा ।
तेरे प्यार की पवित्रता है गंगा के समान ,
जिंदगी भी कम रहेगी मोल जो चुकाऊंगा !
श्रेय तिवारी , मुंबई
+91 9867590757
Friday, January 8, 2010
जागो मेरे देशवासियों जागो ...!!
मै सबको खुश करने यहाँ नही आया ,
ना रामायण वेद सुनाने को आया ।
कैसे चोट दिखा दूँ मै अपने तन की ,
किससे बांटू मै पीड़ा अंतर्मन की ।
१- खून बह रहा भारत माँ के बेटों का ,
मरहम नहीं है दिल्ली की उन चोटों का ।
कौन हैं वो ? जो देश का रक्त बहाते हैं ,
कौन हैं ? जो बालक अनाथ कर जाते हैं ।
कौन हैं वो ? माँ की गोदें सूनी करते ,
कौन हैं वो ? जो कोई दया नहीं रखते ।
इंसानो का खून बहाते जेहादी ,
कौन सा मज़हब देता है ये आज़ादी ।
सहमी आँखें रोती हैं पीड़ित - जन की ,
किससे बांटू मै पीड़ा अंतर्मन की ।
२- क्यों सब ऐसे हाथ पे हाथ धरे बैठे ,
क्यो सब ऐसे वार्ताओं में हैं बैठे ।
देश के नेता भाषण के खाते गोते ,
काश के मरने वालों में वो ख़ुद होते ।
तब उनको वो दर्द समझ में आ जाता ,
फिर कोई कानून बनाया ही जाता ।
ये हैं जिम्मेदार खून की होली के,
यही लुटेरे हर दुल्हन की डोली के ।
भीख मांगती धरती आज समर्पण की ,
किससे बांटू मै पीड़ा अंतर्मन की ।
३- ऐसे जीने से मै मौत सराहूँगा ,
अपने जैसे ही दस-बीस बनाऊंगा ।
वतन की खातिर जो मिटटी में मिल जाएँ ,
मानव- बम बनकर संसद में फट जाएँ ।
जब दिल्ली के नेता सब मर जायेंगे ,
सच मानो हम तब ही खुश रह पायेंगे ।
और इस खातिर देनी होगी कुर्बानी ,
“मै भी हूँ तैयार” आवाजें है आनी ।
सिखलानी परिभाषा दीवानेपन की ,
किससे बांटू मै पीड़ा अंतर्मन की ।
——श्रेय तिवारी , मुंबई