Wednesday, April 1, 2009

अनदेखा कर सबके आंसू , अपना ही सोचे जाता हूँ ,
ख़ुद अंगारों से बचता हूँ , फिर क्यो उपदेश सुनाता हूँ ।

१ -अब मुझको ये लगता है संसार में ही दुःख भरा पड़ा,
इस दुःख का भी कारण है , कारण के पीछे कौन खड़ा ?
कैसे क्या कर डालूं ऐसा , रोज विचार बनाता हूँ ,
कोशिश करने की कोशिश में ही फँस कर रह जाता हूँ ।

अनदेखा कर सबके आंसू , अपना ही सोचे जाता हूँ ,

ख़ुद अंगारों से बचता हूँ , फिर क्यो उपदेश सुनाता हूँ ।

2- कैसे बचता रहता हूँ मै अपने ही कर्तव्यों से ,
भौतिकता में उलझा हूँ , है प्यार मुझे क्यो द्रव्यों से ?
नफ़रत होती है ख़ुद से , सब पल में भूले जाता हूँ ,
जब रोज सवेरे उठता हूँ , माया के ही गुण गाता हूँ ।

अनदेखा कर सबके आंसू , अपना ही सोचे जाता हूँ ,

ख़ुद अंगारों से बचता हूँ , फिर क्यो उपदेश सुनाता हूँ ।

3- प्रभु तुम मेरी सोच बदल दो , मै समाज से जुड़ जाऊं ,
आंसू पी लूँ मै सबके , सुख अपने सबको दे जाऊं ।
झकझोरो अंतर्मन , कैसा जीवन जिए जाता हूँ ?
अपना अपना करता था , सबको मै अब अपनाता हूँ ।

अनदेखा कर सबके आंसू , अपना ही सोचे जाता हूँ ,

ख़ुद अंगारों से बचता हूँ , फिर क्यो उपदेश सुनाता हूँ ।

-----श्रेय तिवारी , मुंबई