Saturday, September 27, 2008

जागो मेरे देशवासियो ....!!

मै सबको खुश करने यहाँ नही आया ,
ना रामायण वेद सुनाने को आया ।
कैसे चोट दिखा दूँ मै अपने तन की ,
किससे बांटू मै पीड़ा अंतर्मन की ।

१- खून बह रहा भारत माँ के बेटों का ,
मरहम नहीं है दिल्ली की उन चोटों का ।
कौन हैं वो ? जो देश का रक्त बहाते हैं ,
कौन हैं ? जो बालक अनाथ कर जाते हैं ।
कौन हैं वो ? माँ की गोदें सूनी करते ,
कौन हैं वो ? जो कोई दया नहीं रखते ।
इंसानो का खून बहाते जेहादी ,
कौन सा मज़हब देता है ये आज़ादी ।

सहमी आँखें रोती हैं पीड़ित - जन की ,
किससे बांटू मै पीड़ा अंतर्मन की ।

२- क्यों सब ऐसे हाथ पे हाथ धरे बैठे ,
क्यो सब ऐसे वार्ताओं में हैं बैठे ।
देश के नेता भाषण के खाते गोते ,
काश के मरने वालों में वो ख़ुद होते ।
तब उनको वो दर्द समझ में आ जाता ,
फिर कोई कानून बनाया ही जाता ।
ये हैं जिम्मेदार खून की होली के,
यही लुटेरे हर दुल्हन की डोली के ।

भीख मांगती धरती आज समर्पण की ,
किससे बांटू मै पीड़ा अंतर्मन की ।

३- ऐसे जीने से मै मौत सराहूँगा ,
अपने जैसे ही दस-बीस बनाऊंगा ।
वतन की खातिर जो मिटटी में मिल जाएँ ,
मानव- बम बनकर संसद में फट जाएँ ।
जब दिल्ली के नेता सब मर जायेंगे ,
सच मानो हम तब ही खुश रह पायेंगे ।
और इस खातिर देनी होगी कुर्बानी ,
"मै भी हूँ तैयार" आवाजें है आनी ।

सिखलानी परिभाषा दीवानेपन की ,
किससे बांटू मै पीड़ा अंतर्मन की ।

------श्रेय तिवारी , मुंबई

Monday, September 8, 2008

मैंने पूछा मृत्यु से....!!

दोस्तों ,एक बार मैंने कल्पना की ! कि यदि मौत आने से पहले किसी भी इंसान को जीने का एक अवसर (कुछ पलों के लिए) दे, तो उन पलों में कोई भी व्यक्ति क्या - क्या करना चाहेगा .......!!


मैंने पूछा मृत्यु से ........ साथ ले चलने से पहले एक मौका दे सकोगी ।


१- उस एक मौके में मुझे कुछ काम हैं अपने बनाने ,
पाप का जीवन रहा है , पुण्य कर लूँ इस बहाने ।
स्वर्ग की राहें किधर है , पंडितों से थी समझना ,
पुत्र का मुख देखना था , ज़िंदगी की थी तमन्ना ।
छोटी है बच्ची मेरी करनी, भरण - पोषण व्यवस्था ,
बीबी है बीमार सी , उसकी ही नाज़ुक सी अवस्था ।
छान, छत, कुटिया बनाकर , कुछ तो दूँ उसको बसेरा,
बस ये इच्छा आख़िरी, उनका सुनहरा हो सवेरा ।


क्या तुम बता दो एक पल मुझ पर भरोसा कर सकोगी .......
मैंने पूछा मृत्यु से साथ ले चलने से पहले एक मौका दे सकोगी ।


२- उस एक मौके में मुझे बेटी के पीले हाथ करने ,
उच्च शिक्षा के लिए बेटों को भेजूंगा मै पढ़ने ।
फिर वधु का सुख मुझे बस देखना रहता ही बाकी ,
तृप्त होता ही नही इच्छा की मदिरा से ये साकी ।
सोचता है, फिर करूँ दीदार नन्हे पौत्र का मै ,
खेल खेलूं साथ उसके , साथ खाना खाऊँगा मै ।
तोतले मुख से मै 'दादा' शब्द का भी श्रवण कर लूँ ,
साथ बीबी के मै चारों धाम का भी भ्रमण कर लूँ ।


क्या तुम बता दो फिर मुझे काशी मै आके मिल सकोगी .............
(ऐसा माना जाता है कि काशी मै मृत्यु होने से इन्सान स्वर्ग में जाता है )
मैंने पूछा मृत्यु से ........ साथ ले चलने से पहले एक मौका दे सकोगी ।


अब मृत्यु ने इंसान को क्या जबाब दिया ....वो सुनिए .....


३- दे दिया तुझको जो मौका , फिर तो हा - हा कार होगी,
इस धरा पर तुच्छ मानव की उफनती बाढ़ होगी ।
फिर तो शायद ही कभी तू , मृत्यु से भयभीत होगा ,
काल की आहट, तुझे तो मात्र एक संगीत होगा ।
मै तुझे पहचानती , इंसान नीयत भी तुम्हारी ,
जब समय आएगा , तब तू फिर बढ़ाएगा उधारी ।
दस बहाने नित बना , मुझको भी धोखा दे चलेगा ,
मै नही , यमराज भी तुझको ना मौका दे सकेगा ।


इसलिए मै अब तुझे ना और अवसर दे सकूंगी ,
और मै न खाऊँगी तुझे , तो मै न जिंदा रह सकूंगी ।

---------श्रेय तिवारी , मुंबई

Friday, September 5, 2008

क्या ये परोपकार है !

एक पादरी ने स्कूल भी चला रखा था । वे बच्चों को रोज़ शिक्षा देते की कोई दया का काम ज़रूर करना चाहिए । शिक्षा देते हुए बहुत दिन हो गए तो उन्होंने सोचा - लड़कों से पूछें तो , की क्या कोई दया धर्म पालन के लिए उत्साहित हुआ भी कि नहीं ?


उस दिन पादरी पूछ ही बैठे - जिन्होंने इस महीने कुछ दया के काम किए हों , वो अपने हाथ ऊपर उठाएं । तीन लड़कों के हाथ ऊपर उठाए । पादरी ने उन्हें पास बुलाया , और प्यार से पूछा - बच्चो बताओ तो तुमने भला क्या -क्या दयालुता के काम किए ?


पहले लडके ने कहा - एक जर्ज़र बुढ़िया को मैंने हाथ पकड़ कर सड़क पार कराइ । पादरी ने उसकी प्रशंसा की । दुसरे से पूछा गया , तो उसने भी एक बुढ़िया को हाथ पकड़कर सड़क पार कराने की बात की । पादरी ने उसे भी शाबासी दी । अब पादरी ने तीसरे से पूछा , तीसरे ने भी जब वही बुढ़िया का हाथ पकड़कर सड़क पार कराने वाली बात कही , तो पादरी को संदेह हुआ और आश्चर्य भी । उन्होंने पूछा बच्चो ! कहीं तुमने एक ही बुढ़िया का हाथ पकड़कर तो सड़क पार नहीं कराई थी ।


बच्चो ने एक स्वर में कहा - हाँ , बिल्कुल ऐसा ही किया था , अब तो पादरी का आश्चर्य और भी बढ़ गया । उन्होंने फिर पूछा - भला एक ही बुढ़िया को सड़क पार कराने के लिए तुम तीनो को क्यों जाना पड़ा ?


लड़कों ने कहा - हमने उससे कहा था कि हमको दया धर्म का पालन करना है , चलो तुम्हे हाथ पकड़कर सड़क पार कराएँगे । बुढ़िया राजी नहीं हुई । उसने कहा - मुझे जहाँ जाना है , वह सड़क के इसी किनारे पर है । सड़क पार करने की मुझे ज़रूरत ही नहीं है । इस पर हम तीनो उस बुढ़िया से चिपट गए । और उसके हाथ पकड़कर खींचते हुए ले गए , और सड़क पार करा कर की माने ।


पादरी लड़कों द्वारा किए गए इस धृष्ट परोपकार से बड़ा दुखी हुआ और कुछ देर तक उदास बैठा रहा , फिर ये सोच कर शांत हो गया कि भारत में समाज - सेवा के नाम पर यही तो विडम्बना चल रही है , अकेले बच्चे ही गुनाहगार नहीं है ।

--------श्रेय तिवारी , मुंबई