Friday, September 5, 2008

क्या ये परोपकार है !

एक पादरी ने स्कूल भी चला रखा था । वे बच्चों को रोज़ शिक्षा देते की कोई दया का काम ज़रूर करना चाहिए । शिक्षा देते हुए बहुत दिन हो गए तो उन्होंने सोचा - लड़कों से पूछें तो , की क्या कोई दया धर्म पालन के लिए उत्साहित हुआ भी कि नहीं ?


उस दिन पादरी पूछ ही बैठे - जिन्होंने इस महीने कुछ दया के काम किए हों , वो अपने हाथ ऊपर उठाएं । तीन लड़कों के हाथ ऊपर उठाए । पादरी ने उन्हें पास बुलाया , और प्यार से पूछा - बच्चो बताओ तो तुमने भला क्या -क्या दयालुता के काम किए ?


पहले लडके ने कहा - एक जर्ज़र बुढ़िया को मैंने हाथ पकड़ कर सड़क पार कराइ । पादरी ने उसकी प्रशंसा की । दुसरे से पूछा गया , तो उसने भी एक बुढ़िया को हाथ पकड़कर सड़क पार कराने की बात की । पादरी ने उसे भी शाबासी दी । अब पादरी ने तीसरे से पूछा , तीसरे ने भी जब वही बुढ़िया का हाथ पकड़कर सड़क पार कराने वाली बात कही , तो पादरी को संदेह हुआ और आश्चर्य भी । उन्होंने पूछा बच्चो ! कहीं तुमने एक ही बुढ़िया का हाथ पकड़कर तो सड़क पार नहीं कराई थी ।


बच्चो ने एक स्वर में कहा - हाँ , बिल्कुल ऐसा ही किया था , अब तो पादरी का आश्चर्य और भी बढ़ गया । उन्होंने फिर पूछा - भला एक ही बुढ़िया को सड़क पार कराने के लिए तुम तीनो को क्यों जाना पड़ा ?


लड़कों ने कहा - हमने उससे कहा था कि हमको दया धर्म का पालन करना है , चलो तुम्हे हाथ पकड़कर सड़क पार कराएँगे । बुढ़िया राजी नहीं हुई । उसने कहा - मुझे जहाँ जाना है , वह सड़क के इसी किनारे पर है । सड़क पार करने की मुझे ज़रूरत ही नहीं है । इस पर हम तीनो उस बुढ़िया से चिपट गए । और उसके हाथ पकड़कर खींचते हुए ले गए , और सड़क पार करा कर की माने ।


पादरी लड़कों द्वारा किए गए इस धृष्ट परोपकार से बड़ा दुखी हुआ और कुछ देर तक उदास बैठा रहा , फिर ये सोच कर शांत हो गया कि भारत में समाज - सेवा के नाम पर यही तो विडम्बना चल रही है , अकेले बच्चे ही गुनाहगार नहीं है ।

--------श्रेय तिवारी , मुंबई

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