Wednesday, January 28, 2009

एक दिन चढा मै, तो रेल का सुनाऊ हाल ...

पास मेरे आके बैठा यूपी का भैय्या ...

बीच की निकाली मांग होठ सारे लाल लाल ,

खून सा पिए बैठा था पान का खबैय्या ...

मुझसे पूछे बार बार कहाँ को जाओगे जी साब,

तंग आया मैंने कहा तेरे घर जाऊंगा ,

बोला मेरा घर कहाँ , गाँव से मै आज आया ,

यारी मुझसे करो मै तुम्हारे घर आऊंगा .

चपर चपर करे मेरा चाटा था दिमाग ,

बात करे थूक मारे और मारे ठट्ठा ।

जाने क्या बिगाडा मैंने, पीछे मेरे पड़ गया ,

बड़ा था कमीना , साला- उल्लू का पट्ठा।

जैसे तैसे शांत किया तो भी हा -हा ही- ही करे ,

छोरी संग nayana

बड़ा समझाया पर अकड़ दिखाए लूलू ,

एक हाथ का नही था , दिखता पतंगा ।

ताक रहा बार बार एकटक सामने ही ,

क्योकि आगे वाला था जनानी वाला डिब्बा ।

छेड़ रहा छोरी को तो मारा उसने मुंह पे हाथ ,

मेरे कपडो पे आए पीक के से धब्बा ।

सवेरे सवेरे ठर्रा pe

No comments: