Monday, August 25, 2008

क्या ये मेरी ज़िंदगी है ?

दोस्तों ,

मैंने बचपन से ही अपना एक उद्देश्य बनाया की मै धन के पीछे नही भागूँगा , मै अपना नाम कमाना चाहता हूँ । मै चाहता हूँ कि मेरे पापा के लिए लोग बोले कि ये 'श्रेय के पापा ' हैं ।

इसके लिए मै पता नही कहाँ - कहाँ भटकता रहा , फिर एक दिन मेरे दिमाग में एक बात आयी जिसे मै आपके समक्ष कविता के रूप में प्रस्तुत कर रहा हूँ ।

कभी सोचता हूँ मै कैसा जीवन जिए जाता हूँ ,
धन दौलत शोहरत के पीछे - पीछे भागा जाता हूँ ।


१- बचपन से ही सोचा शोहरत मुझको भी मिल जायेगी,
नेता - अभिनेता या फिर वो कविता से मिल जायेगी ।
लेखक बन जाऊंगा या फिर निर्माता बन जाऊंगा ,
निर्देशक बन करके भी मै अपना नाम कमाऊंगा ।
फिर डैडी को पहचानेगे लोग 'श्रेय के पापा' से ,
फैन बनेंगे लोग मेरे ऐसा मेरी अभिलाषा में ।
एक तिहाई जीवन मेरा सोच सोच के बीत गया ,
भाग दौड़ के चक्कर में ही सारा समय व्यतीत हुआ ।

आम आदमी जैसा जीवन जी के मै शरमाता हूँ ,
कभी सोचता हूँ मै कैसा जीवन जिए जाता हूँ।


२- एक दिवस मै शयनकक्ष में कुछ उदास सा लेटा था,
प्रश्न स्वयं करके ही मै उत्तर भी ख़ुद को देता था ।
नहीं चाहिए धन दौलत मै तो बस नाम कमाऊंगा ,
पर ये भी आसान नहीं मै कैसे क्या कर पाऊंगा ।
तब दिमाग ने याद किया फिर प्यारे संत बिनोवा को ,
विद्यासागर याद किए , शत नमन आमटे बाबा को ।
ऋषि दधीची , सावित्री को तो भूल नहीं हम पाएंगे ,
सदियों तक ये नाम हमारे इतिहासों में आयेंगे ।


नाम कमा सकता ऐसे भी ,फिर क्यों मै अकुलाता हूँ ,
कभी सोचता हूँ मै कैसा जीवन जिए जाता हूँ ।


३- ये समाज मेरा घर है , ये देश बना मेरा कुनबा ,
दर्द हटे , दुःख दूर भगे मुझ पर सेवा की एक दवा ।
जितना मुझसे हो सकता है , उतना करता जाऊंगा ,
और नहीं तो रोते चेहरों को मै खूब हँसा दूंगा ।
मेरे प्यारे दुखी भाइयो सेवा का अवसर दे दो ,
ये सब मै निस्वार्थ करूँ , मुझको प्रभु ऐसा वर दे दो ।
ऐसे करते करते ही मै जीवन सफल बनाऊंगा ,
जानवरों सा जिया हूँ मै , अब इंसान बन पाऊंगा ।


चुप रहके भी कर सकता हूँ , क्यो मै खुल के गाता हूँ ,
कभी सोचता हूँ मै कैसा जीवन जिए जाता हूँ ।

----श्रेय तिवारी , मुंबई


1 comment:

Anwar Qureshi said...

बढ़िया लिखा है आपने बधाई ...