Sunday, November 15, 2009

मेरे पत्थर दिल सनम ...!!

प्यारे दोस्तों ,

बहुत दिनों बाद, मेरे कुछ मित्रों के आग्रह पर मै आज मेरी एक नई रचना (गीत) प्रस्तुत कर रहा हूँ । आशा करता हूँ कि आप इस रचना को पढ़कर मुझे अपनी टिप्पणिया ज़रूर भेजेंगे । वैसे गीत को पढने के बजाय सुनने में आनंद आता है ।

मैंने पत्थर को पूजा कि "पूजा " मिले ,

हसरतें मर गयीं पर न पूजा मिली ।

एक नफस कि तरह क्यों था देखा मुझे,

मेरा सेहरा सा जीवन था खिल सा गया ।

मै तो अपने कफस से क्यों बहार हुआ ,

दिल ज़खीरा - ऐ - ग़म हो गया दिलनशीं ।

मैंने पत्थर को पूजा कि "पूजा " मिले ,
हसरतें मर गयीं पर न पूजा मिली ।

मै वो परवाज़ था जो सदा कर रहा ,

ऐ खुदा वक्ते - रुखसत मिले न कभी ।

देख तुझको करूँगा मै दीदा -ऐ - तर ,

अपनी देहलीज़ से तू लगे महज़बीं ।

मैंने पत्थर को पूजा कि "पूजा " मिले ,
हसरतें मर गयीं पर न पूजा मिली ।

दरे- आमद पे तेरी यूँ राहें तकीं ,

जब सनमखाने से नज़रें मुझपे पड़ीं ।

क्या अदावत थी मुझसे बता दो तुम्हीं ,

वो निगाहें करम भी न मुझको मिलीं ।

मैंने पत्थर को पूजा कि "पूजा " मिले ,
हसरतें मर गयीं पर न पूजा मिली ।

क्यों खुदा मुझसे रूठा है मेरा हबीब ,

मातमे - ज़िन्दगी है मेरी जिंदगी ।

दर्द - ऐ - दिल क्यों बता तूने इतने दिए ,

इन ग़मों को छिपाकर बना मै कवि ।

मैंने पत्थर को पूजा कि "पूजा " मिले ,
हसरतें मर गयीं पर न पूजा मिली ।

---श्रेय तिवारी , मुंबई

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