Thursday, May 15, 2008

मेरा झारखंड दौरा......!!

एक बार मैं झारखण्ड राज्य के एक गाँव मे गया, वहां एक आदिवासी परिवार मे मैंने एक बहुत ही दर्दनाक द्रश्य देखा..... वो क्या था, आप इस कविता को ध्यान पूर्वक पढिये और जानिए, इस महान भारत मे अभी ऐसा भी होता है ..........!!

क्रांति लाना चाहता सोये हुए परिवेश मे.......,
क्यो बिलखते भूख से बच्चे हमारे देश मे ..! !

१- हाथ फैलाते बेचारे पेट की खातिर यहाँ ......,
हे प्रभु तू बोल इनके भाग्य की रेखा कहाँ ...! !
मुंह भिगोते आँसुओ से क्या ये इनका भाग है ...,
है सुबकते , पेट मे बस भूख की ही आग है ....! !

२-द्रश्य देखा एक मैंने झारखण्ड के गाँव मे ....,
भुखमरी सी थी वहां पूरे के पूरे गाँव मे ........! !
एक था परिवार जिसमे तीन बच्चे थे खड़े .....,
मांग थी रोटी की केवल , मांग पर थे वो अडे ॥! !

३-माँ ने नन्हें तीन को भट्टी की दारू दी पिला ...,
और उनके पास जाकर , देखा थोड़ा सा हिला ...! !
सो रहे थे मस्त तीनो , माँ ने लम्बी साँस ली ...,
और मैंने माँ की दुविधा दो मिनट मे भांप ली ॥॥!

४-दुग्ध स्तन मे न था , तन था बड़ा बीमार सा.... ,
घर मे न दाना अन्न का , न और कुछ आहार था ...! !
भूख की खातिर बेचारे माँ से कुछ भी मांगते ......,
माँ बड़ी लाचार , सुबहो शाम , सोते जागते .........! !

५-कुछ पलों के चैन को , दारू पिलानी ठीक थी ...,
पीकर लुढ़कते देखकर उसको बड़ी तकलीफ थी ....! !
सोचती थी भाग मेरा क्या प्रभु ने लिख दिया .......,
दो सज़ा मुझको , मेरे बच्चों को मैंने विष दिया ...! !
पर प्रभु बच्चे मेरे , शायद तेरे ही लाल है ,
तू ही पालनहार है , हम भी बड़े कंगाल है ........! !

६-हे प्रभु दे दो सहारा , मैं सम्हालूँगा उन्हें......... ,
है वो जो असहाय , खाने को नही मिलता जिन्हें ....! !
मैं नही पर्याप्त इस जग को सहारा दे सकूं ........,
पर मैं करूँ उतना , मेरी औकात से मैं कर सकूं... ! !

७-आज हम सब ले शपथ , कुछ तो करे इनके लिए... ,
तन से , धन से और मन से जुट पड़े उनके लिए ...! !
और इस तरह ही राष्ट्र की सूरत बदलनी चाहिए .....,
शायद मेरे इस देश को दस -बीस गाँधी चाहिए ....! !!

----श्रेय तिवारी

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