हो चली है अति घिनौनी राष्ट्र की ये राजनीती ,
रो रही जनता यहाँ , किसको सुनाये आप बीती ।
हाल क्या है देश का , सब जानते है राज नेता ,
देखता है सामने पर आँख अपनी मूँद लेता ॥
वो भला भी क्या ग़लत है , जीत के आया यहाँ ,
अभी उसे तो देखना है , धांधली माया कहाँ ।
धांधली उद्देश्य इनका , धांधली आदर्श है ,
भुकमरी, बेरोज़गारी मे ये भारतवर्ष है ॥
अरे क्या फर्क पड़ता है , इनके घर दिए है जल रहे ,
और यहाँ नवजात बच्चे भूख मे है पल रहे ।
क्या यही बच्चे करेंगे राष्ट्र के निर्माण को ,
जो बेचारे जूझते है पेट को और प्राण को ॥
बस यहाँ पर 'डार्विन सिद्धांत' ही चल पा रहा है ,
शक्तिशाली ही यहाँ दो वक्त रोटी खा रहा है ।
शक्ति क्या है देखना है , शक्ति कहते है किसे ?
है वो शारीरिक कहीं , पर है कहीं मस्तिष्क से ॥
जो नही दोनों कहीं , वो शक्ति है हथियार से ,
छीनता है हक यहाँ पर , लड़ झगड़ कर वार से ।
क्या ग़लत है वो बेचारा , प्रकृति का सिद्धांत है ,
जीता है मर -मार कर तब भूख करता शांत है ॥
बढ़ रहे अपराध , तो फिर कौन है दोषी यहाँ ,
कौन है खूनी , दरिंदा , कौन है वहशी यहाँ ।
जानते है सब इसे , पर कौन बदलेगा उसे ,
देश जब अपना क्या कोई और बदलेगा इसे ॥
तो जगाओ आज इस सोये हुए परिवेश को ,
और चुनो उनको जो समझे राज को और देश को ।
देश भी है घर तुम्हारा घर को ही भरते चलो ,
और घर चलते जिस तरह , तुम राष्ट्र को भी ले चलो ॥
----श्रेय तिवारी , मुम्बई
Monday, May 19, 2008
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