Monday, May 19, 2008

हुस्न-ऐ-परी....!!

सन् १९९८-९९ की बात है , जब मै चार्टर्ड एकाउंटेंट कोर्स की तैयारी कर रहा था । मै जिस सीऐ के ऑफिस मै आर्टिकलशिप कर रहा था , उस ऑफिस मै गुलनाज़ नाम की एक लड़की काम करती थी। वो बहुत ही खूबसूरत थी । मैं जब भी उसे देखता तो देखता ही रह जाता था । मैंने ये श्रृंगार गीत उसके लिए ही लिखा था ।

जब से देखी थी मैंने वो हुस्ने - परी ,
गुल कहूँ उसको या बोलू खिलती कली ।

1- मैं कभी वैसे ख्वाबो मै चलता नही ,
अब चला पर झलक वो मिली ही नही ।
दिल चुराया था मेरा क्या मुस्कान थी ,
मेरे पतझड़ मै सावन सा आया कहीं ।

जब से देखी थी मैंने वो हुस्ने - परी ,

गुल कहूँ उसको या बोलू खिलती कली ।

2- माना मैं खामियों का खजाना सही ।
देखा तुझको पर आइना देखा नही ।
हो चला मैं दीवाना , तेरे हुस्न का ।
तूने मुझको कभी क्यो निहारा नही ।

जब से देखी थी मैंने वो हुस्ने - परी ,

गुल कहूँ उसको या बोलू खिलती कली ।

3- मैंने मय को कभी भी चखा ही नहीं ।
पर तुझे देखकर क्यो शराबी बना ।

क्या करूँ मेरी गोरी तू गोरी सही ।
दिल है मुझमे भी चाहे मैं काला सही ।

जब से देखी थी मैंने वो हुस्ने - परी ,

गुल कहूँ उसको या बोलू खिलती कली ।

4- ना करे तू मोहब्बत तो ना ही सही ।
मैं ना भाया तुझे, कोई शिकवा नही ।
गर गया मैं जो जन्नत तो मांगू यही ।
ऐ खुदा मैं भी बन जाऊं उस सा हसीं ।

जब से देखी थी मैंने वो हुस्ने - परी ,

गुल कहूँ उसको या बोलू खिलती कली ।

--------श्रेय तिवारी , मुम्बई

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